
दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री और शिक्षा सुधार के पोस्टरबॉय मनीष सिसोदिया ने एक बार फिर सुर्खियाँ बटोरीं — इस बार सवाल पूछकर… AI से!
एलन मस्क के बनाए AI चैटबॉट ग्रोक को टैग करते हुए उन्होंने X (Twitter) पर एक लंबा-सा सवाल दाग दिया, जिसमें उन्होंने शिक्षा की दशा-दिशा, सुधार और 1947 की स्कूल जनगणना तक की बात छेड़ दी।
शिक्षा सुधार बनाम सिर्फ बिल्डिंग सुधार
सिसोदिया ने ग्रोक से पूछा, “क्या सिर्फ इमारत सुधारने से शिक्षा सुधरती है?”
उन्होंने बताया:
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दिल्ली में इन्फ्रास्ट्रक्चर तो सुधारा, लेकिन असली ध्यान:
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Teachers’ Training
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हैप्पीनेस करिकुलम (मानसिक विकास)
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Business Blasters (उद्यमिता)
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और इसके पॉजिटिव नतीजे भी सामने आए।
कुल मिलाकर उन्होंने ग्रोक से पूछा — “तो फिर देशभर के सरकारी स्कूल अब भी ICU में क्यों हैं?”
1947 की पढ़ाई की परछाइयाँ
सिसोदिया का दूसरा सवाल तकनीकी नहीं, AI के दिमाग का असली टेस्ट था:
“1947 में भारत में कितने सरकारी और प्राइवेट स्कूल थे? उसमें कितने बच्चे पढ़ते थे? और कुल बच्चों का स्कूल जाने का प्रतिशत कितना था?”
ग्रोक को जवाब देना है… पर क्या वो तैयार है?
एलन मस्क का AI ग्रोक, जो सटायर, सच्चाई और सॉफ़्टवेयर का संयोग है — अब उसे Data vs Depth की लड़ाई में उतरना होगा।

AI से सवाल पूछना आसान है, लेकिन जवाब में केवल आंकड़े नहीं — दर्द, अनुभव और ग्राउंड रियलिटी की भी ज़रूरत है। और इसमें इंसान आज भी एक कदम आगे है।
कल्पना कीजिए ग्रोक का जवाब:
“भारत में 1947 में शिक्षा व्यवस्था थी, परंतु GPT-3.5 में उसका API सपोर्ट नहीं है।”
या फिर:
“उस समय डेटा पेपर में होता था, क्लाउड में नहीं।”
अब आप सोचिए — डिजिटल दिमाग और ज़मीन से जुड़ा मंत्री — किसका जवाब ज़्यादा भरोसेमंद लगेगा?
एजुकेशन रिफॉर्म्स का असली पाठ कौन पढ़ा रहा है?
मनीष सिसोदिया का यह सवाल दरअसल पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को आईना दिखाता है।
दिल्ली मॉडल, जो कुछ साल पहले सिर्फ विरोधियों की हँसी का कारण था, अब दुनिया भर में कॉल केसेज में शामिल है।
और AI से सवाल पूछकर उन्होंने बहस को नई ऊँचाई दे दी है — जहां जवाब न सिर्फ कोड से, बल्कि कमिटमेंट से भी आता है।
शिक्षा का एआईकरण या इंसानी अनुभव?
जब AI चैटबॉट्स से सवाल पूछे जा रहे हैं, तो असली परीक्षा सिर्फ टेक्नोलॉजी की नहीं — राजनीति की, पॉलिसी की और पब्लिक की समझ की भी है।
ग्रोक ने जवाब दिलचस्प दिए।
